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कश्मीर और हिमाचल ही नहीं, अब यूपी में भी उगेंगे सेब

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Now apple farming is possible in Uttar Pradesh! Scientists at CSA University Kanpur have developed 11 low chilling apple trees that grow even in 40°C. A revolutionary step for farmers in hot regions.

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  • सीएसए के कृषि वैज्ञानिकों ने तैयार किये हैं 11 सेब के पेड़
  • कानपुर में विकसित हुई खास वैरायटी ‘लो चिलिंग एप्पल’

  • प्रमुख संवाददाता/दीनार टाइम्स
    कानपुर। कश्मीर और हिमाचल ही नहीं, अब उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में भी सेब की खेती होगी। चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने इतिहास रच कर सेब की फसल का रास्ता साफ कर दिया है। यहां के वैज्ञानिकों ने ‘अन्ना’ वैरायटी की सेब खेती का सफल प्रयोग किया।

  • सेब की खेती अब सिर्फ हिमाचल या कश्मीर तक सीमित नहीं रहेगी। कानपुर जैसे मैदानी और गर्म इलाकों में भी सेब की खेती अब हकीकत में होने जा रही है। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा करिश्मा कर दिखाया है, जिसने कृषि क्षेत्र में नई उम्मीदों के बीज बो दिए हैं।

  • विश्वविद्यालय के उद्यान विभाग में पहली बार सेब के पेड़ों ने फूल देना शुरू कर दिया है। कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि अगले एक-दो सालों में इन पेड़ों पर फल भी लगने लगेंगे। यह उपलब्धि न सिर्फ वैज्ञानिक शोध का परिणाम है बल्कि किसानों के लिए भी एक नई राह खोलने वाली है.

  • चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के फार्मिंग एरिया में तीन साल पहले नैनीताल से 20 सेब के पौधे लाए गए थे। इनमें से 11 पौधे कानपुर की जलवायु में सर्वाइव कर गए और अब वे पूरी तरह से विकसित हो चुके हैं। खास बात ये है कि ये पौधे 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी हरे-भरे खड़े है। अब इनमें फूल आने शुरू हो गए हैं, जो इस बात का संकेत है कि इन पौधों में जल्द ही फल भी लगेंगे।

  • वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग में एक खास वैरायटी ‘लो चिलिंग एप्पल’ यानी कम सर्दी में फल देने वाली किस्म ‘अन्ना’ का उपयोग किया है। अन्ना वैरायटी की खासियत यह है कि इसे ज्यादा ठंड की जरूरत नहीं होती है। यह किस्म कम सर्द जलवायु वाले क्षेत्रों में भी अच्छी उपज देती है. यही वजह है कि यह कानपुर जैसे इलाकों में भी सफल होती दिख रही है.

  • चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के डीन उद्यान विभाग के डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी ने बताया कि अब तक यह माना जाता था कि सेब की खेती सिर्फ ठंडी जलवायु में ही संभव है, लेकिन अन्ना वैरायटी ने यह मिथक तोड़ दिया है। अब हमारे किसान मैदानी इलाकों में भी सेब की खेती का सपना देख सकते हैं। अगले एक-दो साल में फल आने लगेंगे और यह पूरे प्रदेश के किसानों के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव साबित हो सकता है.

  • अगर यह प्रयोग पूरी तरह सफल होता है, तो उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत के कई मैदानी क्षेत्रों में सेब की खेती संभव हो सकेगी। इससे एक ओर जहां किसानों की आमदनी बढ़ेगी। वहीं, बाजार में स्थानीय सेब की आपूर्ति भी बढ़ेगी। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती तापमान चुनौतियों के बीच ऐसी किस्मों की खोज और परीक्षण बेहद जरूरी हैं.

चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय का यह प्रयास उसी दिशा में एक ठोस कदम है। आने वाले समय में और भी कई लो चिलिंग फलों पर प्रयोग किए जा सकते हैं, जो भारतीय कृषि को नए मुकाम तक पहुंचा सकते हैं। अब सेब के लिए सिर्फ पहाड़ों की ओर देखने की जरूरत नहीं है. बल्कि मैदानी इलाकों के खेतों में भी लालिमा बिखेरते बाग नजर आएंगे. कानपुर से शुरू हुई यह कहानी देशभर के किसानों को एक नई दिशा दिखा सकती है.

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