– एक ही छत के नीचे पढ़ेंगे सामान्य और दिव्यांग बच्चे
– सात जिलों में मॉडल स्कूल संचालित, अन्य जिलों में निर्माण जारी
– ब्रेल से लेकर रैम्प तक, हर सुविधा से लैस होंगे समेकित विद्यालय
अब दिव्यांग और सामान्य बच्चे पढ़ेंगे साथ-साथ
लखनऊ, 16 मई।
अब तक दिव्यांग बच्चों को अलग विद्यालयों में पढ़ाया जाता था। अभिभावकों के लिए अपने विशेष बच्चों को सामान्य स्कूलों में भेजना मुश्किल था।
हालांकि, अब यह सोच बदल रही है। योगी सरकार दिव्यांग और सामान्य बच्चों को एक ही स्कूल में समान शिक्षा देने की दिशा में काम कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार समावेशी शिक्षा को नया आयाम दे रही है।
सात जिलों में सफल मॉडल, बाकी में विस्तार जारी
प्रदेश के सात जनपदों—औरेया, लखनऊ, कन्नौज, प्रयागराज, आजमगढ़, बलिया और महराजगंज—में समेकित विशेष माध्यमिक विद्यालय संचालित हो रहे हैं।
इन स्कूलों में दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, अस्थिबाधित और सामान्य छात्र एक साथ पढ़ाई कर रहे हैं। अब तक 325 विद्यार्थियों का पंजीकरण हो चुका है।
इस तरह, सभी छात्र एक प्रेरणादायी और संवेदनशील माहौल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। सरकार मानती है कि अलग स्कूल खोलने के बजाय एक ही मंच पर शिक्षा देना अधिक प्रभावी है।
हर सुविधा से लैस होंगे ये स्कूल
इन विद्यालयों में दी जा रही हैं आधुनिक सुविधाएं:
- विशेष प्रशिक्षित शिक्षक
- ब्रेल लिपि और श्रवण यंत्र
- स्पेशल एजुकेशन उपकरण
- रैम्प, व्हीलचेयर और अन्य सहायक संसाधन
साथ ही, सामान्य और दिव्यांग छात्रों के बीच संवाद और सहभागिता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस प्रयास से, बच्चों के बीच भेदभाव की दीवारें खत्म हो रही हैं।
नई परियोजनाएं तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं
गाजियाबाद में नया समेकित विद्यालय प्रक्रियाधीन है। इसके अलावा, मीरजापुर, एटा, प्रतापगढ़, वाराणसी और बुलन्दशहर में भी निर्माण कार्य तेज़ी से चल रहा है।
सरकार का उद्देश्य है कि राज्य के हर कोने में दिव्यांग छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ हो। इससे वे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकें।
सम्मान और समान अवसर देने की पहल
पिछड़ा वर्ग एवं दिव्यांगजन सशक्तीकरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नरेंद्र कश्यप ने कहा:
“हमारा लक्ष्य दिव्यांग बच्चों को केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि सम्मान और समान अवसर देना है।”
इसलिए, समेकित विद्यालयों के ज़रिए यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई भी बच्चा पीछे न रह जाए।
नतीजतन, यह पहल दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ समाज में समानता और समावेशिता को भी मजबूत कर रही है।