भूखे पेट स्कूलों में एमडीएम पका रहे रसोइया, 5 महीने से नहीं मिला मानदेय
कानपुर देहात के परिषदीय स्कूलों में मध्याह्न भोजन (एमडीएम) तैयार करने वाले रसोइयों की हालत बेहद दयनीय है। इन्हें पिछले 5 महीने से मानदेय नहीं मिला है, जिसके कारण ये महिलाएं भूखे पेट स्कूलों में बच्चों के लिए भोजन पका रही हैं।
रसोइयों की मुश्किलें
परिषदीय स्कूलों में रसोइयों की ड्यूटी कागजों पर सिर्फ 2 घंटे की होती है, लेकिन व्यवहार में इन्हें पूरे दिन स्कूल में रुकना पड़ता है। इन्हें न केवल भोजन पकाने का काम करना पड़ता है, बल्कि स्कूल का ताला खोलने, बंद करने, सफाई करने और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम भी करना पड़ता है। सिलेंडर न होने पर लकड़ी पर भोजन पकाने की मजबूरी है। इसके बावजूद इन्हें अक्सर दुत्कार और नौकरी से निकालने की धमकी झेलनी पड़ती है।
मानदेय की समस्या
रसोइयों को प्रति माह महज 2,000 रुपये मानदेय मिलता है, लेकिन यह भी समय पर नहीं दिया जाता। जनपद के 1,925 परिषदीय स्कूलों में कार्यरत 4,276 रसोइयों को अक्टूबर 2023 से फरवरी 2024 तक का मानदेय अभी तक नहीं मिला है। इसके कारण इनकी गृहस्थी चलाने में भारी मुश्किलें आ रही हैं।
रसोइयों की मांग
रसोइयों का कहना है कि वे भूखे पेट स्कूल आती हैं और बच्चों के लिए भोजन पकाती हैं, लेकिन उनकी अपनी समस्याओं की ओर कोई ध्यान नहीं देता। उन्हें समय पर मानदेय मिलना चाहिए और उनके काम के घंटे तय किए जाने चाहिए। साथ ही, उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार को रोका जाना चाहिए।
शिक्षा विभाग की उदासीनता
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी रसोइयों की समस्याओं को लेकर उदासीन बने हुए हैं। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने वाला विभाग रसोइयों के मामूली मानदेय का भुगतान करने में भी लापरवाही बरत रहा है।
निष्कर्ष
परिषदीय स्कूलों के रसोइयों की यह स्थिति शिक्षा व्यवस्था की कमजोर नीतियों को उजागर करती है। इन महिलाओं के समय पर मानदेय का भुगतान करना और उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करना सरकार और शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है। इस मामले में तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि ये महिलाएं अपना काम गरिमा के साथ कर सकें।